तथागत !
मिलोगे कभी फिर 
तो सुनूंगा मैं 
तुमसे तुम्हारी 
वह पुरानी कविता ...
"जीवन
दुख है."
और फिर 
कहूंगा तुमसे
कि 
इस छोटी सी कविता में
मुझे मिला बड़ा सुख है।
धर्म 
जब काव्य से छूटता है
तो 
टूटता है
उद्धत होता है
कट्टर होता है ! 
गीत की भाषा में ढलकर
दुख
ईश्वर
जीवन 
सत्य
सब वहनीय हो जाते हैं !
सौम्य हो जाते हैं ! 
मेरे काम की कविता! सुन्दर।
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